करो या मरो की स्थिति में राहुल का बड़ा दाब...?

      अतुल गौड़ लेखक स्वतंत्र टिप्पणी कार एवं वरिष्ठ पत्रकार है                          लोकसभा चुनाव में पहले चरण के मतदान की उल्टी ...


     अतुल गौड़ लेखक स्वतंत्र टिप्पणी कार एवं वरिष्ठ पत्रकार है
                        लोकसभा चुनाव में पहले चरण के मतदान की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है ऐसे में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने वह पासा चल दिया है जो यकीनन मोदी और अमित शाह के साथ पूरी भाजपा को बड़ी मुसीबत में डाल सकता है दरअसल राहुल गांधी के ₹72000.... गरीबों के सीधे खाते में डालने के कई मायने हैं कॉन्ग्रेस सीधे तौर पर यह कह रही है कि वह यह रकम गरीब परिवारों की महिला सदस्यों के खाते में डालेगी इसका यह मतलब है कि महिलाएं इस योजना से आकर्षित हो और उन्हें लगे कि कांग्रेस पार्टी किसानों की कर्ज माफी करने के बाद अब महिलाओं को भी अपने जहन में रखकर कुछ देने जा रही है दरअसल उसके पीछे महिलाओं की यह सोच भी हो सकती है खासकर गरीब महिलाओं की के यह रकम उनके घरेलू खर्च में उपयोगी साबित होगी दूसरी बात यह है कि मुस्लिम महिला जो कहीं ना कहीं तीन तलाक के मुद्दे पर भाजपा के साथ दिखाई देने की स्थिति में नजर आती थी वह भी राहुल गांधी के द्वारा बंधाई आशाओं के बाद पूरी तरह से भाजपा से छिटक सकती हैं और उन्हें भी यह रकम लुभा सकती है ₹6000 महीना और ₹72000 साल गरीब परिवार की महिला सदस्य के खाते में सीधे ट्रांसफर करने का जो राहुल गांधी का दाव है वह बीजेपी को किस कदर परेशान किए हुए हैं इसका अंदाजा सिर्फ और सिर्फ इस बात से आसानी से लगाया जा सकता है कि ना तो बीजेपी यह कह रही है कि यह संभव नहीं है ना ही बीजेपी इसका विरोध कर रही है और ना ही बीजेपी इसे गलत मान रही है बीजेपी कह रही है तो सिर्फ इतना कि इससे पहले कांग्रेस और राहुल गांधी के साथ गांधी परिवार के सदस्यों और कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों ने गरीबी हटाने के लिए जो कुछ भी कहा और किया क्या वह जमीन पर आया लेकिन इस से बात बनती दिखाई नहीं देती अगर बीजेपी ने इस ₹72000 के काट के संबंध में कोई रणनीति या पैंतरा नहीं खेला तो उसे लोकसभा चुनावों में काफी परेशानी उठानी पड़ सकती है भारतीय जनता पार्टी के बड़े छोटे नेता चाहे जो कुछ भी कहे लेकिन हालत इस बयान और इस घोषणा के बाद भाजपा की वाकई पतली है जानकार बताते हैं कि यह रकम देना मुमकिन है और इसके कई रास्ते हैं लगभग 3:30 लाख से 4:30 लाख करोड़ रुपए का खर्चा सरकार के ऊपर बढ़ेगा सरकारी बजट का यह 13 फ़ीसदी हिस्सा रहेगा और इसे सरकार किसी तरह मैनेज कर सकती है कहा  यह भी जा रहा है कि सरकार और तरह की सब्सिडीओं में कटौती करके इस योजना को फलीभूत कर सकती है लेकिन फिलहाल राहुल गांधी ने अन्य योजनाओं को बंद करने से इनकार किया है यह भी अपने आप में मायने रखता है जिस अंदाज में राहुल गांधी ने इस घोषणा को जनता के समक्ष परोसा है उसे देखकर स्पष्ट तौर पर यह लगता है कि इस योजना को लेकर जिसे राहुल गांधी ने न्याय का नाम दिया है उस योजना को लेकर बेहद सटीक और एक बेहतरीन होमवर्क किया गया है न केवल योजना की पिच देखी गई बल की योजना कैसे आधार में आएगी और कैसे इस पर काम किया जाएगा और किस तरह से इस रकम को छोटे गरीब महिला परिवार के सदस्यों के खाते में इस रकम को पहुंचाया जाएगा यह सब कुछ समझ लेने के बाद राहुल गांधी ने यह घोषणा की है दूसरी बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम में भारतीय जनता पार्टी ने राहुल गांधी को पप्पू कहकर संबोधित किया है जबकि दूसरा पहलू अगर राहुल गांधी के दृष्टिकोण से देखा जाए तो राहुल गांधी वह शख्स हैं जिन्होंने डूबती कांग्रेस को न केवल मजबूत जंजीर से बांधने में कामयाबी हासिल की है बल्कि कांग्रेस को आज की तारीख में एकजुट कर लिया है और मध्य प्रदेश कर्नाटक गुजरात राजस्थान और छत्तीसगढ़ में या तो सरकार बना लेना या कड़ी टक्कर देना कांग्रेश की बड़ी जीत है बीजेपी की गलती है कि वह इन जीतो का श्रेय कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को देने में हिचकिचाती रही है या यूं कहें कि उसे सहज नहीं लग रहा है इसके पीछे राहुल गांधी एज फैक्टर हो सकते हैं जबकि जानकारों की माने तो यह बात सोलह आने सच है कि जो कुछ भी करिश्मा बीते कुछ दिनों में कांग्रेस पार्टी ने किया है उसमें किसी भी तरह का कोई कुदरती जादू नहीं है जनता की नाराजगी भी नहीं है अगर है तो राहुल गांधी का एक सटीक सिस्टम और कांग्रेस को संभालने का बेहतर मैनेजमेंट दरअसल बीजेपी के शासन काल में जिसका नेतृत्व नरेंद्र मोदी ने किया उस दौरान अच्छी और बुरी दोनों बातें हुई कार्यकाल कैसा रहा यह निर्णय तो आने वाले चुनावों में खुद देश की जनता ही तय करेगी लेकिन जो विश्लेषण हम कर सकते हैं वह यह है कि नोटबंदी से जो फायदा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देखते थे वह धरातल पर सामने नहीं आ सका जिसका व्यापक समर्थन पहले था लेकिन बाद में विरोध बढ़ गया दूसरा  वायदा जो नरेंद्र मोदी ने बेरोजगार युवकों और युवतियों को रोजगार देने का किया था वह वादा भी जमीन पर अपनी जगह नहीं बना पाया जिससे युवा नाराज हुए और कहीं ना कहीं उन्हें ऐसा लगा कि और सरकारें जो वादाखिलाफी करती आई है वही पता चला कि नरेंद्र मोदी ने भी की इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कौशल विकास योजनाओं को आगे लाकर उन्होंने रोजगार पैदा करने के कई सारे सिस्टम तैयार किए हैं लेकिन उसे इतनी जल्दी इस देश में स्वीकार कर लेना मुश्किल होगा हालांकि स्किल इंडिया के तहत इस पर व्यापक काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार मे हुआ है इसमें कोई संशय नहीं है तीसरा व्यापारी जो नाराज हुए उसके पीछे जीएसटी का आना था जीएसटी में कई सारे बदलाव और बार बार नए नए नियम के चलते व्यापारियों को काफी असुविधा का सामना करना पड़ा और वह सरकार से पूरी तरह से असंतुष्ट नजर आने लगे इसके बाद भावनाओं की बात करें तो राम मंदिर जैसा संवेदनशील मुद्दा भी सरकार ने किनारे रखा हालांकि उसने अपने चुनावी घोषणा पत्र में जैसा कहा था वह उस पर लगभग चलती हुई नजर आई लेकिन राम मंदिर को मुद्दा बनाने की हर समय पर मोदी सरकार ने भी पूरी कोशिश की लेकिन राम मंदिर बनने के पक्ष वालों को भी इस सरकार से निराशा लगी बड़े वर्ग को देश में लगता था कि नरेंद्र मोदी के सरकार और सत्ता में बैठने के बाद राम मंदिर निर्माण निश्चित तौर पर हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ और इससे भी नाराजगी बनी चौथा मुद्दा आपसी मनमुटाव का इस दौरान काफी सारे रिएक्शन सामने आए कई सारे लोगों ने अपने सामानों को वापस किया कई सारी बहस ने जन्म लिया और कुछ लोग यह कहने लगे कि देश में सुरक्षा महसूस नहीं होती एक वर्ग विशेष को ऐसा लगा और उन्होंने कई तरीके से अपनी बात को सामने रखा पक्ष और विपक्ष दोनों इस मसले को लेकर टकराव करते रहे अंता यह मामला कुछ दिनों बाद स्वता ही शांत हो गया लेकिन लोग इस मुद्दे को भूल नहीं पाए जो पक्ष में थे वह पक्ष में रहे और जो विपक्ष में थे वह विपक्ष में रहे यह सब चलता रहा लेकिन एक बात जो नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे अहम थी वह बात यह कि उनकी सरकार और उनके मंत्रियों पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं लगा लेकिन राफेल सौदे को लेकर जिस तरह से राहुल गांधी ने फील्डिंग कि उसे देखकर बड़ा वर्ग देश में यह सोचने लगा कि जब धुआं उठा है तो निश्चित तौर पर कहीं ना कहीं आग जरूर लगी होगी उनका यह भी आरोप था कि अगर सब कुछ ठीक-ठाक था तो फिर किसी अनुभव शाली कंपनी को इस सौदे में शामिल क्यों नहीं किया गया अगर राहुल गांधी वाकई झूठ बोल रहे हैं तो 4 दिन पुरानी अनिल अंबानी की कंपनी को इस सौदे में शामिल क्यों और कैसे कर लिया गया जैसे कुछ सवाल है जो सवाल थोड़ा संदेश जरूर पैदा करते हैं हालांकि रफाल मामले पर अभी तक कांग्रेस कुछ भी स्पष्ट नहीं कर पाई है सुप्रीम कोर्ट और जांच एजेंसी ने भी भारत सरकार को क्लीन चिट दी है इस सब को लेकर राजनीतिक घटनाक्रम तेजी और मध्यम गति से समय समय पर बदलते रहे साथ ही बीच बीच में कई सारे विधानसभा चुनाव आते रहे बीजेपी को कभी फायदा तो कभी नुकसान होता रहा कभी नई सत्ता मिलती रही तो कभी पुरानी सत्ता  हाथ से जाती रही लेकिन लोकसभा चुनावों से ठीक पहले मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विजई कांग्रेस का डंका बजने के बाद स्थिति एकदम बदल गई और लोग सोचने लगे कि कांग्रेस में दम आ गई है और कांग्रेस के दोबारा मैदान में आ जाने से बीजेपी को भी लगने लगा कि कहीं ना कहीं उसके लिए 2019 की राह थोड़ी मुश्किल भरी हो सकती हैं कई सारे सर्वे सामने आए और सर्वे में आया कि भारतीय जनता पार्टी बड़ी पार्टी तो बनेगी लेकिन सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होगी अगर वाकई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेहतर और बेहतर काम करने की कोशिश की देश को मजबूत और मजबूत बनाने की दिशा में कई सारे कदम उठाएं तो फिर आखिर ऐसी क्या वजह हुई कि उन्हें 2014के बनस्पति 2019 में कम सीटें मिलेंगी इस पर भाजपा मंथन कर रही थी और लोकसभा चुनाव 2019 की तैयारी में जुटी थी तभी एकाएक पुलवामा में आतंकवादी हमला सामने आया और पुलवामा हमले के बाद जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने मैदान में उतरकर फ्रंट फुट पर  बल्लेबाजी करना शुरू की उससे कांग्रेस पूरी तरह से सकते मैं आ गई उसके पास राजनीति करने के लिए अब हथियार  ही शेष नहीं बचे थे और उसे लगने लगा था कि बिना गोला बारूद के वह राजनीतिक 2019 का युद्ध हार जाएगी और लगभग कुछ दिन तक चलता और निरंतर कांग्रेस पर भाजपा के प्रहार होते रहे और कांग्रेस के नेता एक के बाद एक गलत बयानबाजी करते हुए सामने दिखाई पड़ने लगे यहां तक की सेम जो राहुल गांधी के गुरु  बतलाए जाते हैं उन्होंने भी एक ऐसा विवादित बयान दिया जिसे लेकर राजनीतिक सुर्खियां तीन-चार दिन तक अखबारों और टीवी चैनलों की शोभा बढ़ाती रही फिर एकाएक 25 मार्च को राहुल गांधी ने वह दांव खेला जिस दाओं ने वह सब कुछ भुला दिया जो कुछ कांग्रेस ने पिछले कुछ दिनों में डैमेज किया था और डैमेज कंट्रोल का इससे बेहतर मंत्र कोई दूसरा हो भी नहीं सकता था अब बीजेपी क्या करेगी क्या बीजेपी ₹72000 की जगह ₹80000 सालाना गरीब परिवार की महिलाओं के खाते में डालेगी या फिर इसका कोई और तोड़ बीजेपी निकालकर लोकसभा चुनावों में अपनी बात को लेकर जाएगी या फिर वह इस बात पर ज्यादा ध्यान देगी कि इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक गरीबी हटाओ की बात तो करते थे लेकिन गरीब गरीबी हटाने की दिशा में उन्होंने किया कुछ नहीं और यही बीजेपी की सबसे बड़ी भूल होगी अगर वह सिर्फ और सिर्फ जनता से यह कहती रही कि राजीव गांधी इंदिरा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने  गरीबी हटाने के लिए कुछ नहीं किया तो राहुल गांधी कैसे कर सकते हैं दरअसल भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली को भी एक इंटरव्यू के दौरान मैंने सुना तो उन्होंने कहा कि पीढ़ियों के साथ राजनीतिक पार्टियां भी बदलती है लेकिन उन्होंने जिस तरह से कहा कि पीढ़ियों के साथ पार्टियां भी बदलती है और उन्हें बदलना चाहिए उससे ऐसा लगा जैसे मानो पीढ़ी के साथ पार्टी बदलने का जिम्मा सिर्फ और सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के पास में ही है और संस्कार और पार्टी के दिशा निर्देशों और उसकी  नई विचारधारा को शामिल करने का कॉपीराइट सिर्फ बीजेपी के पास ही है दूसरी जो पार्टियां है वह पीढ़ी के साथ नहीं बदलती हैं लेकिन मेरा मानना है कि निश्चित तौर पर यह राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी से पहले समझ लिया और वह जैसे ही  कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने  उन्होंने कांग्रेस पार्टी में जिस तरह की ओवरहालिंग की है उससे साफ तौर पर लगता है कि ना केवल कांग्रेस नई पीढ़ी की पार्टी है बल्कि यह भी साफ तौर पर कहा जा सकता है कि राहुल गांधी ने नई कांग्रेस का गठन शुरु कर दिया है और अगर कांग्रेस सरकार और सत्ता में बैठी तो वाकई में कुछ ऐसा होगा जिसकी बीजेपी ने कल्पना भी नहीं की होगी बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि राहुल गांधी और कांग्रेस के दिशा निर्देश तय करने वाले लीडरों को यह अच्छी तरह से पता है कि दरअसल कांग्रेस का अपना इंडिविजुअल वोट बैंक कहां और कैसे हासिल किया जाता है यही बात है कि कांग्रेस ने अपने वोटर को साध कर रखने में पूरी तरह से कामयाबी हासिल कर ली है ऐसा दिखाई पड़ने लगा है और दूसरी तरफ जो नए वोटर विकल्प ना होने की बात कर रहे हैं वह कांग्रेस के पाले में किसी तरह से शामिल हो जाएं इसकी कवायद राहुल गांधी प्रियंका गांधी वाड्रा और दूसरे कुछ नेता कर रहे हैं गठबंधन को लेकर भी कांग्रेस का नजरिया साफ तौर पर दिखाई देता है कांग्रेस की रणनीति है कि वह केवल और केवल अपनी ताकत में इजाफा करें और चुनाव से पहले या चुनाव के दौरान गठबंधन को तवज्जो ना दे और अपनी ताकत बना कर के सामने रखे उसे पता है कि खुद-ब-खुद जब कांग्रेस एक विकल्प के रूप में सामने आएगी तो ना केवल उसके प्रधानमंत्री को सरकार में चुनने की संभावनाएं बढ़ेगी बल्कि वह सब लोग जो भाजपा की सरकार को आने से रोकना चाहते हैं कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनाने के लिए सामने आ खड़े होंगे दरअसल करो या मरो की स्थिति में कांग्रेस और गांधी परिवार इस समय दिखाई पड़ता है इसके पीछे राहुल गांधी की अपनी एक मजबूरी भी है भारतीय जनता पार्टी ने कई सारे आरोप लगाए हैं और फिलहाल वह हेराल्ड मामले में जमानत पर भी हैं उनके परिवार और उनके रिश्तेदारों पर जिस प्रकार से भ्रष्टाचार के आरोप सामने आए हैं अगर वह आरोप बने रहते हैं और राहुल गांधी की सत्ता से दूरी बनती है तो उनके लिए हालात और मुश्किल पैदा करने वाले होंगे मरता क्या ना करता वाली नीति पर चलने वाले राहुल सब कुछ करेंगे जो बीजेपी को हराने में कारगर होगा यह योजना काम आएगी या नहीं आएगी इस पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाली बीजेपी स्पष्ट रूप से इस बात को समझ ले कि यह शत-प्रतिशत उपयोगी होगी और तकरीबन 15 से 20 फ़ीसदी बोट इस योजना की घोषणा करने के बाद कांग्रेस के खाते में सीधे तौर पर जा सकते हैं वहीं एक वर्ग विशेष को प्रभावित करने के लिए कांग्रेसी लंबे समय से एक मुहिम के तहत बयान बाजी कर उन वोटों को अपने पक्ष में संरक्षित करने का काम पहले से ही करती आ रही है यहां यह भी बता देना जरूरी होगा कि देश में मुस्लिम वोटों का एक बड़ा वर्ग आज भी कांग्रेस के साथ खड़ा दिखाई देता है और यह गठजोड़ अगर बनता है तो कांग्रेस के वोट प्रतिशत में अच्छा खासा इजाफा इस लोकसभा चुनाव 2019 में देखा जा सकता है राहुल गांधी की एक बात और भी नोटिस करने वाली है राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और कांग्रेस में जीत के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था कि हमने मोदी से कुछ सीखा है और वह सिखा है कि क्या नहीं करना चाहिए और यह बात उन की 16 आने सही और सटीक है महाभारत में आपने द्रोणाचार्य को पांडवों और कौरवों को शिक्षित करते हुए देखा होगा अस्त्र चलाने की विद्या दोनों आचार्य कौरव और पांडवों को देते थे  लेकिन एक शख्स और भी था जो शास्त्र विद्या को  परोक्ष रूप से नहीं लेकिन अपरोक्ष रूप से निरंतर फॉलो करता था और उस शख्स का नाम था एकलव्य  राहुल गांधी ने भी अपना और परोक्ष रूप से सीखने के लिए मोदी के पास तो नहीं गए लेकिन अपरोक्ष रूप से उन्होंने मोदी से वाकई में बहुत कुछ सीख लिया है दरअसल उनको गाइड करने वाले एक पैनल है या एक शख्स ने या उन्होंने खुद अपने आप को बिल्कुल सही सलाह दी है और उन्होंने वाकई में वह सब कुछ सीखा है मोदी से कि क्या नहीं करना चाहिए मोदी ने बहुत सारी चीजें की है उसमें बहुत सारे ऐसे कार्य हैं जिनकी सराहना करनी चाहिए दिल खोलकर प्रशंसा करनी चाहिए क्योंकि वह वाकई में काबिले तारीफ है लेकिन राहुल गांधी की प्रशंसा इसलिए बनती है क्योंकि उन्होंने नोटिस किया मोदी को और उनसे सीखा कि क्या नहीं करना चाहिए और यह किसी भी इंसान के लिए सीखने वाली सबसे बड़ी बात है अगर चुनावों से पहले की रणनीति पर विचार करें और देखें और तेजी को समझने की कोशिश करें तो राहुल गांधी ने कुछ वैसे ही किया जैसे नरेंद्र मोदी करते थे दरअसल भारतीय जनता पार्टी ने यह प्रचारित करने की कोशिश की कि कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ एक वर्ग विशेष की पार्टी है जबकि कांग्रेस ने उससे बाहर निकलने की कोशिश की और देश को यह बताने की कोशिश की कि वह 1 वर्ग विशेष की नहीं बल्कि सभी वर्गों की पार्टी है कई धार्मिक स्थानों का चुनाव करना उन धार्मिक स्थानों को अपने राजनीतिक इस्तेमाल के लिए अमल में लाना गंगा के तट पर जाना और भी तमाम तरह की ऐसी चीजें थी जिन्होंने कांग्रेस को नए सिरे से खड़ा किया प्रियंका गांधी वाड्रा की लॉन्चिंग राहुल गांधी ने ठीक समय पर की न केवल लॉन्चिंग की बल्कि उन को जिस तरह से जिम्मेदारी दी क्षेत्र की  वह भी कारगर साबित हो सकती है उसके बाद जिस तरह से मध्यप्रदेश में और अन्य राज्यों में कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए रणनीति बनाई जैसे बड़े नेताओं का जोखिम भरी सीट पर आकर करना और सीट को तवज्जो दे कर एक एक सीट पर बारीक निगा रखना प्रत्याशियों ठीक चुनाव करना और कांग्रेस को संगठित करके चुनाव मैदान में उतारना कार्यकर्ताओं को मेरा बूथ मेरा गौरव का संदेश देना यह सब उन्होंने नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी से ही सीखा है और जो नहीं करना है  उन्होंने नहीं  किया किसी को बताया भी नहीं और चुपके चुपके राहुल गांधी की योजना न्याय पर काम होता रहा पूरी तरह से वह योजना तैयार हो गई पूरे डॉक्यूमेंट जब सामने आ गए और अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह जैसे लोगों ने उस विषय पर गहन चिंतन कर लिया और उस योजना को ठीक माना और उपयोगी माना तब जाकर राहुल गांधी ने उसका ऐलान कर दिया वह भी चुनाव से ठीक कुछ रोज पहले बीजेपी कह रही है कि इस योजना से लोगों को ललचाना और बहकाने की कोशिश की गई है लेकिन यह सबसे बड़ा डाउ था जो कांग्रेस पार्टी ने चुनाव से ठीक पहले चल दिया बीजेपी के पास इसकी कार्ड में क्या है यह तो फिलहाल बीजेपी ही जाने लेकिन इतना तय है कि पुलवामा हमले के बाद जिस तरह से कांग्रेस बैक फुट पर नजर आने लगी थी और उसके तरकस में तीर दिखाई नहीं पड़ते थे वही इस न्याय घोषणा के बाद अब कांग्रेस पूरी तरह से हथियारों से लैस नजर आते हुए युद्ध मैदान में अपनी चुनौती देती नजर आ रही है  

अतुल गौड़ लेखक स्वतंत्र टिप्पणी कार एवं वरिष्ठ पत्रकार है

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