प्रमोद भार्गव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्रांतिकारी चंद्रषेखर आजाद की जन्मस्थली भाबरा से भटके कष्मीरी युवाओं के मर्म को पकड़ने की को...
प्रमोद भार्गव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्रांतिकारी चंद्रषेखर आजाद की जन्मस्थली भाबरा से भटके कष्मीरी युवाओं के मर्म को पकड़ने की कोषिष की है। मोदी ने कहा कि मुट्ठीभर लोग कष्मीर की परंपरा को ठेस पहुंचा रहे हैं। वे युवा, जिनके हाथ में लैपटॉप, किताब और क्रिकेट का बल्ला होना चाहिए था, उनके हाथ में अपने ही देष के सैनिकों पर हमला बोलने के लिए पत्थर थमाए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कंधे से बंदूक उतारकर हल उठाने की बात भी कही। मोदी का संदेष बेहद अहम् है, क्योंकि आज का युवा तरक्की किताब पढ़कर, तककनीक से जुड़कर और खेल खेलकर ही कर सकता है। वहीं कष्मीर का जो आम आदमी है, उसका गुजारा बंदूक से होने वाला नहीं है। स्वयं के आत्मनिर्भर और कष्मीर को समृद्ध बनाने के लिए हल की मूठ मुट्ठी में पकड़नी होगी। मसलन उन सब पारंपरिक व्यवसायों से जुड़ना होगा, जो व्यक्ति के रोजगार और कष्मीर की खुषहाली के आधार हैं। लेकिन ये सभी ख्वाहिषें तभी हकीकत में बदलनी संभव हैं, जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का खात्मा हो और कष्मीर के अलगाववादी पाक के बहकावे में न आकर कष्मीरी अवाम और राश्ट्रहित को तरजीह दें।
सवा दो साल के कार्यकाल के बाद मोदी अब जो असामाजिक तत्वों के विरुद्ध आक्रामकता दिखा रहे हैं, उससे लग रहा है कि उन्होंने राजनीतिक स्वीकार्यता बढ़ाने और तालमेल बिठाने की पहल षुरू कर दी है। यह पहल षायद उन्होंने ऊना में गाय की खाल उतारने वाले दलितोें की पिटाई और फिर गुजरात में दलितों के सामने आए आक्रोष से सबक लेकर की है। कथित गोरक्षकों पर भी उन्हें तीखे तेवर दिखाना जरूरी थे। कष्मीरी युवाओं को पट्टी पढ़ानी भी जरूरी थी। दरअसल कष्मीरी युवाओं के हाथ में जो पत्थर हैं, वे पाक के नापाक मंसूबे का विस्तार हैं। पाक की अवाम में यह मंसूबा पल रहा है कि ‘हंस के लिया है पाकिस्तान, लड़के लेंगे हिंदुस्तान।‘ इस मकसदपूर्ती के लिए मुस्लिम कोैम के उन गरीब और लाचार युवाओं को इस्लाम के बहाने आतंकवादी बनाने का काम किया, जो अपने परिवार की आर्थिक बदहाली दूर करने के लिए आर्थिक सुरक्षा चाहते थे। पाक सेना के भेश में यही आतंकी अंतरराश्ट्रीय नियंत्रण रेखा को पार कर भारत-पाक सीमा पर छद्म युद्ध लड़ रहे हैं। कारगिल युद्ध में भी इन छद्म बहरूपियों की मुख्य भूमिका थी। इस सच्चाई से पर्दा खुद पाक के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल एवं पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के सेवानिवृत्त अधिकारी षाहिद अजीज ने ‘द नेषनल डेली अखबार‘ में उठाते हुए कहा था कि कारगिल की तरह हमने कोई सबक नहीं लिया है। हकीकत यह है कि हमारे गलत और जिद्दी कामों की कीमत हमारे बच्चे अपने खून से चुका रहे हैं। कमोबेष आतंकवादी और अलगाववादियों की षह के चलते यही हश्र कष्मीर के युवा भोग रहे हैं। 10 लाख के खंुखार इनामी बुरहान वानी की मौत को षहीद बताने के सिलसिले में जो प्रदर्षन हुए हैं, उनमेें अब तक 59 युवा मारे गए हैं और करीब 100 नागरिक घायल हुए।
इन भटके युवाओं को राह पर लाने के नजरिए से केंद्र सरकार और भाजपा में हलचल दिखाई दे रही है, उससे यह अनुभव किया जा सकता है कि सरकार कष्मीर में षांति बहाली के लिए प्रतिबद्ध है। इसी क्रम में राज्य की मुुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती दिल्ली में हैं। वे अब तक गृहमंत्री राजनाथ सिंह, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह से मिल चुकी हैं। भाजपा के महासचिव और जम्मू-कष्मीर के प्रभारी राम माधव ने कष्मीर में उल्लेखनीय काम किया है। उन्होंने भटके युवाओं में मानसिक बदलाव की दृश्टि से पटनीटॉप में युवा विचारकों का एक सम्मेलन आयोजित किया। इसे सरकारी कार्यक्रमों से इतर एक अनौपचारिक वैचारिक कोषिष माना जा रहा है। लेकिन सबसे बड़ा संकट सीमा पार से अलगाववादियों को मिल रहा बेखौफ प्रोत्साहन है। जो काम पहले दबे-छुपे होता था, वह खुले तौर पर डंके की चोट होने लगा है। कष्मीर में बीते सप्ताह अलगाववादियों के हुए एक सम्मेलन में आतंकवादियों ने न केवल मंच साझा किया, बल्कि भाशण भी दिया। यही वे लोग हैं, जो युवाओं को सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी के लिए उकसाते हैं। जब तक सीमा पार से संचालित गतिविधियों का हस्तक्षेप कष्मीर की धरती पर जारी रहेगा, तब तक मुष्किल है कि कोई कारगर बात बन पाए ?
दरअसल राजनीतिक प्रक्रिया और वैचारिक गोश्ठियों में यह हकीकत भी सामने लाने की जरूरत है कि जो अलगाववादी अलगाव का नेतृत्व कर रहे हैं, उनमें से ज्यादातर के बीबी-बच्चे कष्मीर की सरजमीं पर रहते ही नहीं हैं। इनके दिल्ली में घर हैं और इनके बच्चे देष के नामी स्कूलों में या तो पढ़ रहे हैं, या फिर विदेषी बहुराश्ट्रीय कंपनियों में नौकरी कर रहे हैं। इस लिहाज से सवाल उठता है कि जब उनका कथित संघर्श कष्मीर की भलाई के लिए हैं तो फिर वे इस लड़ाई से अपने बीबी-बच्चों को क्योें दूर रखे हुए हैं। यह सवाल हाथ में पत्थर लेने पाले युवा अलगाववादियों से पुछ सकते हैंे।
मोदी ने कष्मीर के मुद्दे पर कांग्रेस समेत सभी दलों ने जो एकजुटता दिखाई, उसके प्रति आभार माना है। साथ ही, कष्मीर में षांति बहाली के लिए अटलबिहारी वाजपेयी की नीति को आगे बढ़ाने की बात भी कही है। महबूबा मुफ्ती भी यही चाहती हैं। लेकिन उनकी दबी इच्छा यह भी है कि राजनीतिक प्रक्रिया में संभव हो तो पाकिस्तान को भी षामिल कर लिया जाए। किंतु सरकार को चाहिए की वह पाक को तो पूरी तरह नजरअंदाज करे ही, अलबत्ता कांग्रेस समेत जो अन्य महत्वपूर्ण दल हैं, उनको जरूर साथ ले। असंतुश्ट युवा और हुर्रियत नेताओं से भी संवाद कायम करने में कोई हर्ज नहीं है। लेकिन इस बातचीत में यह पूरा ख्याल रखा जाए कि देष की संप्रभुता को खतरे में डालने वाला कोई समझौता न हो ? हां स्वायत्तता में बढ़ोत्तरी औैर रोजगार से संबंधित कोई पैकेज देने या आईटी कंपनी स्थापित करने के बारे में भी सरकार सोच सकती है।
दरअसल अटलबिहारी वाजपेयी कष्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत जैसे मानवतावादी हितों के संदर्भ में कष्मीर का सामाधान चाहते थे। लेकिन पाकिस्तान के दखल के चलते परिणाम षून्य रहा। इसके उलट आगरा से जब परवेज मुषर्रफ पाकिस्तान पहुंचे तो कारगिल में युद्ध की भूमिका रच दी। अटलजी की नीति दो टूक और स्पश्ट नहीं थी। डॉ मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी इसी ढुलमुल नीति को अमल में लाने की कोषिष होती रही है। वास्तव में जरूरत तो यह है कि कष्मीर के आतंकी फन को कुचलने और कष्मीर में षांति बहाली के लिए मोदी पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव से प्रेरणा लें। वे राव ही थे, जिन्होंने कष्मीर और पंजाब में बढ़ते आतंक की नब्ज को टटोला और अंतरराश्ट्रीय ताकतो ंकी परवाह किए बिना पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और सेना को उग्रवाद से मुकाबले के लिए लगा दिया। पाकिस्तान को बीच मेें लाने की इसलिए भी जरूरत नहीं हैं, क्योंकि वहां के आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदिन के सरगना सैयद सलाहउद्दीन ने कष्मीर के मुद्दे के परिप्रेक्ष्य में भारत को परमाणु यूद्ध की धमकी दी है। बुरहान वानी भी इसी संगठन से जुड़ा था। दरअसल आतंक से ग्रस्त होने के बावजूद पाकिस्तान की भारत विरोधी रणनीति में आतंकी भागीदार हैं। जब किसी नीति अथवा रणनीति में आतंकी खुले तौर से भागीदार हों तो पाक से भला कष्मीर मुद्दे पर बात कैसे संभव है ? वैसे भी जब षांति की हरेक पहल को पाक सेना और चरमपंथी पलीता लगा रहे हैं, तो फिर पाकिस्तान को कष्मीर के मुद्दे पर मध्यस्थ बनाने की कतई जरूरत नहीं है।
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