देश में चुनावों का मौसम है और राजनैतिक दल बस हर हाल में जीतना चाहते हैं चाहे इसके लिए देश ही क्यूँ न लुट जाये कांग्रेस अध्यक्ष राहुल...
देश में चुनावों का मौसम है और राजनैतिक दल बस हर हाल में जीतना चाहते हैं चाहे इसके लिए देश ही क्यूँ न लुट जाये कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने पहले ही कर्ज माफ़ी की बात कर दी हैं तो उन्ही के समर्थन से कर्नाटक में चल रही सरकार ने किसानो की क़र्ज़ माफ़ी का ऐलान भी कर दिया है ए बताया गया है की किसानो के कर्ज़ माफ़ी से होने वाले घाटे को पेट्रोलियम उत्पादों को करीब ३० फीसदी महंगा क्रर वसूला जायेगा उधर मध्य प्रदेश में भी लुटा लुटी का ये खेल खूब जारी है और चुनाव आते आते तो न जाने किस हद तक होगा तो दूसरी तरफ देश के पीएम मोदी ने भी लुटाने को लेकर अपने इरादे साफ क्रर दिए है एांस ांस ांस कल ही किसानो को बड़े फायेदे का ऐलान करते हुए समर्थन मूल्य में वृधि की बात कही गयी है ये सुब कुछ देख कर यकीन होने लगा है की वाकई मेरा देश बदल रहा है देश का खजाना लुटाने की इस तरकीब ने ये बिलकुल साफ़ क्रर दिया है की किसान अब जल्द ही अमीर होने लगेगा और एक मध्यमवर्गी जल्दी ही परेशानी की तयारी में भी दिखेगा दर असल मधय्म्बर्गी के कन्धों पर ही तो आता है ये बोझ इसे कभी कोई नहीं समझेगा विकास की बात और विकास का आधार सच में पीछे छूटा सा जाता है और यहाँ कुछ कुछ एहसास होता है की विकास बाकई पागल सा हो गया हालात ये भी बताते है की देश थका सा है खजाने को यूँही लुटता देख मजबूर बस गधा सा है चुनावो में सामने आती इस तरह की बातों में महज़ उलझा सा है और हैरान करने वाली बात ये की सब कुछ जानते हुए भी बेचारा ये देश मंदिर मज्जिद और जात पात में बंटा सा है आरक्षण की दीमक से खोखले इस देश को मुफ्त के बतौने ने अपाहिज बना दिया है चुनावों को लेकर नितिन गडकरी की इस बात से सोलह आने इत्तफाक रखना होगा की इस देश में चुनाव विकास पर कम जात पात छूट माफ़ी आरक्षण बहुबल और धन बल पर ज्यादा जीते जाते हैं चुनावी साल में सुब को कुछ न कुछ सरकारी बतौने का इंतज़ार रहता है फिर 5 साल क्या कुछ होता है कहने से ज्यादा समझना जरूरी है न जाने क्यूँ देश को करीब से देखने की किसी को फुर्सत नहीं है आकडे बताते है की देश की लगभग ३० फीसदी आबादी को भरपेट खाना नहीं है बात राईट २ फ़ूड की होती है देश के १८ से २३ फीसदी बच्चे आज भी अपनी पूरी शिक्षा नहीं कर पाते बात राईट २ एजुकेशन की होती है देश में ६० फीसदी लोगों के पास आज भी साफ़ पीने का पानी नहीं है देश के ७० फीसदी से ज्यादा जल स्त्रोत प्रदूषित हैं देश में जिस अनुपात में वन ख़त्म हो रहे हैं उसका २५ फीसदी भी पौधारोपण नहीं हो पा रहा है स्वस्थ्य जीवन की बात बेमानी सी लगती है सरकारी अस्पतालों का बिगड़ता ढर्रा और आबादी का बे हिसाब लोड कम होते डॉक्टर्स और बात राईट २ ट्रीटमेंट की भी होती है आसमान से बरसती बूंदों को न सरकार सहेजती है और न देश की जनता को इन्हें सहेजने की जरुरत लगती है सरकारी स्कूल में जाना मतलब मजबूरी निजी स्कूलों की मनमानी तो निजी अस्पतालों को कमाई का अड्डा बनालेने वाले देश को जरा पलट कर देखना जरूरी होगा बस शायद अब यही रुक जाना होगा समझने की दरकार है ये देश वरना आगे बर्बादी का बड़ा खरनाक मंजर होगा ए ये देश वो है जिसके ७० फीसदी खेत सिचाई से वंचित हैं ये देश वो है जिसके पास ४७ फीसदी सड़कों की कमी है ये देश वो है जिसमे १०० में से ४३ बे रोजगार है ए ये देश वो है जो बैगैर सिस्टम के दौड़ने की कोशीश करता है सरकार देना है तो खेत को पानी दो हातो को काम दो सफ़र को सड़कें दो पड़ने को बिजली दो स्कूलों में बेहतर शिक्षा दो अस्पतालों को डॉक्टर्स दो लोगों को सिस्टम से इलाज दो पीने का साफ पानी दो नहरें दो बस सत्ता की इस भूख में इस देश लो लुटाने वालों जरा हालाते समन्दर पर भी गौर करो बस एक बार तो मिल बैठों बहुतेरे नेताओं इस देश की खातिर क्यूंकि जब ये देश ही नहीं होगा तो तुम्हारी राजनीती कहाँ होगी एजरुरत है इस देश को कुछ साल ऐसे गठबंधन सरकार की जिससे देश का कोई नेता दूर न रहे सबके दिलों में देश की प्रगति की बात हो सब बैठ कर इस देश की तकदीर गड़ें एक दूसरे की टांग खिचाई तो आज़ादी से अब तक बदस्तूर जारी है इस बार क्क्यूँ
न वाकई सरकार हमारी हो
न वाकई सरकार हमारी हो
अतुल कुमार गौड
लेखक प्रिंट और एलोक्ट्रोनिक मिडिया के वरिष्ट पत्रकार है
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