अन्नदाता की आय सुरक्षित करने की सार्थक पहल

                                    अन्नदाता की आय सुरक्षित करने की सार्थक पहल                                                           ...

                                   अन्नदाता की आय सुरक्षित करने की सार्थक पहल

                                                               प्रमोद भार्गव

समय पर किसान द्वारा उपजाई फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल पाने के कारण अन्नदाता के सामने कई तरह के संकट मुंहबाए खड़े हो जाते हैं। ऐसे में वह न तो बैंकों से लिया कर्ज समय पर चुका पाते हैं और न ही अगली फसल के लिए वाजिब तैयारी कर पाते हैं। बच्चों की पढ़ाई और षादी भी प्रभावित होते हैं। यदि अन्नदाता के परिवार में कोई सदस्य गंभीर बीमारी से पीड़ित है तो उसका इलाज कराना भी मुष्किल होता है। इन वजहों से उबर नहीं पाने के कारण किसान आत्मघाती कदम उठाने तक को मजबूर हो जाते हैं। इन समस्याओं से निजात पाने के लिए ही राजग सरकार ने पिछले दिनों न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी वृद्धि की है, जिससे किसान की आमदनी दोगुनी हो जाए और अब इसी कड़ी में केंद्र सरकार ने ‘प्रधानमंत्री अन्नदाता आय सरंक्षण नीति‘ को मंजूरी दी है। इसके तहत अगले दो वित्तीय वर्शों के लिए 15 हजार 53 करोड़ रुपए मंजूर किए है। अब यदि बाजार में फसल का मूल्य एमएसपी से कम होगा तो राज्य सरकारें इन योजनाओं में से किसी एक का चुनाव कर किसानों को धनराषि का भुगतान कर सकती है।  
राजग सरकार ने चार साल की लंबी प्रतीक्षा के बाद अब किसानों की गंभीरता से सुध लेना षुरू कर दी है। अन्नदाता आय सरंक्षण नीति के तहत राज्य सरकारों को तीन प्रकार के विकल्प दिए गए हैं। एक, नीति के तहत राज्यों को केंद्र के साथ मिलकर फसलों की खरीद करनी होगी, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत होगी। दूसरी भावांतर भुगतान योजना और तीसरी प्रायोगिक तौर पर निजी क्षेत्रों को भी एमएसपी पर खरीद में छूट दी गई है। इसके लिए इन्हें अलग से प्रोत्साहन राषि दी जाएगी। निसंदेह इन नीतियों से बाजार की सरंचना किसान के हित में मजबूत होगी। इसके साथ ही यदि फसल बीमा का समय पर भुगतान, आसान कृशि ऋण और बिजली की उपलब्धता तय कर दी जाती है तो किसान की आमदनी दूनी होने की उम्मीद बढ़ जाएगी। ऐसे ही उपायों से खेती की लागत कम करने और आय में वृद्धि के लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है। ऐसा होता है तो किसान और किसानी से जुड़े मजदूरों का पलायन रुकेगा और खेती 70 फीसदी ग्रामीण आबादी के रोजगार का जरिया बनी रहेगी। खेती घाटे का सौदा न रहे इस दृश्टि से कृशि उपकरण, खाद, बीज और कीटनाषकों के मूल्य पर नियंत्रण भी जरूरी है। इन वस्तुओं के निर्माता किसानों को नकली खाद, बीज और कीटनाषक देकर भी बर्बाद करने में लगे हैं।
 भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के चुनावी घोशणा पत्र में किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया भी था। अब इसे पूरा करना इसलिए जरूरी हो गया था, क्योंकि अक्टूबर-नवंबर में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव और इसके ठीक चार माह बाद मई 2019 में आम चुनाव होने हैं। हालांकि कुछ खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य पहले से ही लागत मूल्य का डेढ़ गुना है। लेकिन धान, रागी और मूंग आदि का समर्थन मूल्य लागत की डेढ़ गुनी कीमत से कम है। इन फसलों के उत्पादक किसानों को इस मूल्य वृद्धि से सबसे अधिक लाभ होगा। एमएसपी में न्यूनतम 3.7 प्रतिषत और अधिकतम 52.5 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी की गई है। इससे सरकारी खजाने पर 33000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार बढ़ेगा। इस नए मूल्य निधारण से धान की खरीद पर ही 15000 करोड़ रुपए के अतिरिक्त बोझ की उम्मीद हैं। किसानों की आमदनी में यह बढ़ोतरी व्यापक रूप से देषहित में है। दरअसल किसान की आमदनी बढ़ने से चैतरफा लाभ होता है। फसलों के प्रसंस्करण से लेकर कृशि उपकरण और खाद-बीज के कारखानों की गतिषीलता किसान की आय पर ही निर्भर है। मंडियों में आढ़त, अनाज के भरा-भर्ती और यातायात से जुड़े व्यापरियों को भी जीवनदान किसान की उपज से ही मिलता है।        
किसान, गरीब और वंचित तबकों की हैसियत बढ़ाने की दृश्टि से आवास और उज्ज्वला योजनाओं के बाद प्रधानमंत्री अन्नदाता आय सरंक्षण नीति सरकार की चैथी बड़ी पहल है। हालांकि इसके पहले पंजाब, महाराश्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेष और उत्तराखंड के गन्ना किसानों को बड़ी राहत देते हुए 8,500 करोड़ का पैकेज दिया है। फसल बीमा योजना और भूमि स्वास्थ्य कार्ड भी इसी कड़ी के हिस्सा रहे हैं। बीते चार आम बजटों में भी कई सिंचाई योजनाओं को मंजूर किया गया है, जिससे वर्शा पर निर्भरता कम हो। गरीबी रेखा से नीचे जीने वालों को बीमार होने पर पांच लाख रुपए तक की आर्थिक मदद के अहम् प्रावधान किए हैं। मोदी सरकार के ये ऐसे काम हैं, जिन पर यदि उचित व ईमानदारी से क्रियान्वयन होता है तो किसान और गरीब मजदूर का कल्याण तो होगा ही 2019 के लोकसभा चुनाव में भी मोदी की वापसी हो सकती है। इन योजनाओं के वजूद में आ जाने से कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों द्वारा मोदी सरकार को किसान विरोधी सरकार साबित करने के प्रयास किए जा रहे थे, उनको भी पालीता लगना तय है।
ये उपाय किए जाना इसलिए जरूरी थे, क्योंकि अतिवृश्टि और अनावृश्टि जैसे प्राकृतिक प्रकोपों के बावजूद देष में कृशि उत्पादन चरम पर है। सरकार द्वारा पेष आंकड़ों के मुताबिक वर्श 2016-17 में करीब 275 मिलियन टन खाद्यान्न और करीब 300 मिलियन टन फलों व सब्जियों का रिकाॅर्ड उत्पादन हुआ है। बावजूद किसान सड़कों पर उपज फेंकते हुए आंदोलित थे और आत्महत्या भी कर रहे थे, लिहाजा किसी भी संवेदनषील सरकार के लिए किसान चिंतनीय पहलू होना चाहिए था। गोया, इसकी पृश्ठभूमि 2018-19 के आम बजट में ही रख दी गई थी। हालांकि  कृशि, किसान और गरीब को सर्वोच्च प्राथमिकता देना सरकार की कृपा नहीं बल्कि दायित्व है, क्योंकि देष की आबादी की आजीविका और कृशि आधारित उद्योग अंततः किसान द्वारा खून-पसीने से उगाई फसल से ही गतिमान रहते हैं। यदि ग्रामीण भारत पर फोकस नहीं किया गया होता तो जिस आर्थिक विकास दर को 8 प्रतिषत तक लाया जा सका है, वह संभव ही नहीं थी। इस समय पूरे देष में ग्रामों से मांग की कमी दर्ज की गई है। निसंदेह गांव और कृशि क्षेत्र से जुड़ी जिन योजनाओं की श्रृंखला को जमीन पर उतारने के लिए 14.3 लाख करोड़ रुपए का बजट प्रावधान किया गया था, उसका उपयोग अब सार्थक रूप में होते लग रहा है। ऐसे ही उपायों से किसान की आय सही मायनों में 2022 तक दोगुनी हो पाएगी। इस हेतु अभी फसलों का उत्पादन बढ़ाने, कृशि की लागत कम करने, खाद्य प्रसंस्करण और कृशि आधारित वस्तुओं का निर्यात बढ़ाने की भी जरूरत है। दरअसल बीते कुछ सालों में कृशि निर्यात में सालाना करीब 10 अरब डाॅलर की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं कृशि आयात 10 अरब डाॅलर से अधिक बढ़ गया है। अब इस दिषा में भी सुधार होने की उम्मीद है।
केंद्र सरकार फिलहाल एमएसपी तय करने के तरीके में ‘ए-2‘ फाॅमूर्ला अपनाती रही है। यानी फसल उपजाने की लागत में केवल बीज, खाद, सिंचाई और परिवार के श्रम का मूल्य जोड़ा जाता है। इसके अनुसार जो लागत बैठती है, उसमें 50 फीसदी धनराषि जोड़कर समर्थन मूल्य तय कर दिया जाता है। जबकि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिष है कि इस उत्पादन लागत में कृशि भूमि का किराया भी जोड़ा जाए। इसके बाद सरकार द्वारा दी जाने वाली 50 प्रतिषत धनराषि जोड़कर समर्थन मुल्य सुनिष्चित किया जाना चाहिए। फसल का अंतरराश्ट्रीय भाव तय करने का मानक भी यही है। यदि भविश्य में ये मानक तय कर दिए जाते हैं तो किसान की खुषहाली और बढ़ जाएगी। एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राश्ट्रीय आयोग ने भी वर्श 2006 में यही युक्ति सुझाई थी। समर्थन मूल्य में की गई इन वृद्धियों से ऐसा लग रहा है कि भविश्य में कृशि भूमि का किराया भी इस मूल्य में जोड़ दिया जाएगा। इन वृद्धियों से कृशि क्षेत्र की विकास दर में भी वृद्धि होने की उम्मीद है। यदि देष की सकल घरेलू उत्पाद दर को दहाई अंक में ले जाना है तो कृशि क्षेत्र की विकास दर 4 प्रतिषत होनी चाहिए। साफ है, कालांतर में इस दिषा में भी अनुकूल परिणाम निकलेंगे।
प्रमोद भार्गव
लेखक/पत्रकार
शब्दार्थ 49,श्रीराम काॅलोनी
शिवपुरी म.प्र.
मो. 09425488224

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