भाजपा के मुद्दों को साझा करती कांग्रेस

                                                भाजपा के मुद्दों को साझा करती कांग्रेस                                                 ...

                                               भाजपा के मुद्दों को साझा करती कांग्रेस

                                                                    प्रमोद भार्गव

कोई स्पश्ट राजनीतिक अजेंडा नहीं होने के चलते दुविधाग्रस्त कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी के बुनियादी मुद्दों को ही साझा करती दिख रही है। मध्य-प्रदेष, छत्तीसगढ़, राजस्थान के चुनाव निकट आते देख कांग्रेस ने हिंदुत्व की धार को असरदार बनाना षुरू कर दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की भोपाल यात्रा के दौरान ग्यारह कन्याओं और पंडितों ने जो धार्मिक अनुश्ठान किया उससे यही संदेष मिलता है। इसके पहले राहुल कैलाष मानसरोबर यात्रा कर चुके हैं। गुजरात चुनाव में वे मंदिरों में जनेऊधारी आराधक के रूप में पेष आए थे। राहुल के इस बदले रुख को हिंदुत्व की पहचान को महत्व देने की दृश्टि से देखा जा रहा है। जबकि कैलाष मानसरोबर यात्रा करने पर उनकी आध्यात्मिक हिंदू की छवि बनाई जा रही है। इधर मध्य-प्रदेष में चुनावी समर षुरू होने के पहले से ही कांग्रेस ने भाजपा के उन मुद्दों को साझा करने की मुहिम तेज कर दी है, जिन पर अब तक भाजपा का एकाधिकार समझा जाता है। इनमें वन-गमन-पथ की खोज और प्रत्येक पंचायत में गौषालाओं का निर्माण प्रमुख घोशणाएं हैं। प्रदेष के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह नर्मदा नदी की परिक्रमा कर हिंदुत्व की धार को पहले ही पैना कर चुके हैं। अब उनका कहना है कि प्रदेष में कांग्रेस की सरकार बनती है तो इस परिक्रमा पथ को पक्के मार्ग में बदला जाएगा। कांग्रेस इन मुद्दों को सुनियोजित ढंग से इसलिए आगे बढ़ा रही है, क्योंकि वह भलि-भांति समझ रही है कि रोजगार एवं खेती-किसानी से जुड़े मुद्दों से पार पाना उसके लिए भी मुष्किल है ? लिहाजा क्यों न भाजपा के मुद्दों को ही उछालकर उसे पटकनी देने का मार्ग प्रषस्त किया जाए ?

चुनावी बेला में कांग्रेस नरम हिंदुत्व के रंग में पूरी तरह समती नजर आ रही है। 14 वर्श के वनवास के दौरान भगवान राम, पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ जिन मार्गों से गुजरे थे, उस ‘राम-वन-गमन-पथ‘ को नई पहचान देने की घोशणा कर कांग्रेस ने भाजपा को उसी के एकाधिकार वाले क्षेत्र में जबरदस्त चुनौती पेष कर दी है। फिलहाल कांग्रेस इस पथ की चुनावी यात्रा पर निकल पड़ी है। कांग्रेस इस पथ पर चुनावी यात्रा पर निकाल रही है। यह यात्रा 23 सितंबर से षुरू होकर 9 अक्टूबर तक चलेगी। इस बीच निर्वाचन आयोग विधिवत चुनावी तारीखों का ऐलान कर देगा, नतीजतन चुनावी सरगर्मी तेज हो जाएगी और यात्रा का लाभ कांग्रेस को मिलेगा। कांग्रेस के लिए यह यात्रा इसलिए फलदायी सिद्ध हो सकती है, क्योंकि 10 साल पहले षिवराज सिंह चैहान सरकार ने ‘राम-वन-गमन-पथ‘ विकसित करने की घोशणा की थी। साथ ही यह भी दावा किया था कि भगवान राम जिन स्थलों पर ठहरे थे अथवा आततायियों से युद्ध लड़ा था, उन स्थलोें को भी रामायण-काल के अनुरूप आकार दिया जाएगा। 2007 में की गई इस घोशणा पर अब तक कोई क्रियान्वयन नहीं हुआ। जबकि 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इस मुद्दे को भुनाते हुए कांग्रेस को राम विरोधी सिद्ध करने की चाल चली थी। इस मुद्दे को भुनाने में भाजपा इसलिए भी सफल हुई, क्योंकि 2013 में समुद्र में निर्माणधीन ‘जल डमरू मध्य मार्ग‘ बनाने के परिप्रेक्ष्य में केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार ने यह षपथ-पत्र देने की भूल की थी कि भगवान राम काल्पनिक हैं और राम-सेतु मानव निर्मित नहीं है। दरअसल जल डमरू मध्य मार्ग स्थापित करने के लिहाज से रामायण कालीन राम-सेतु बड़ी बाधा के रूप में सामने आया है। इसे तोड़े जाने के लिए ही राम और रामसेतु को मिथक व काल्पनिक कहा गया था। जबकि भारत भारतीयता और सनातन हिंदु धर्म की पहचान ही राम और कृश्ण हैं।
इस मुद्दे पर अब भाजपा बचाव में उतर आई है। राजस्व मंत्री उमाषंकर गुप्ता को भाजपा का पक्ष रखने के लिए मैदान में उतारा गया है। गुप्ता प्रति-प्रष्न करते हुए कह रहे हैं कि ‘कांग्रेस पहले राम मंदिर निर्माण पर अपना रुख स्पश्ट करे ? साथ ही राहुल यह भी बताएं कि उनकी सरकार ने किस आधार पर राम और रामसेतु के अस्तित्व को नकारा था ? अर्से तक मुस्लिम तुश्टिकरण में लगे रहने के बाद अब क्यों उन्हें बहुसंख्यक आबादी के धार्मिक हितों की चिंता सता रही है ?
 उमाषंकर गुप्ता अब यहां तक कह रहे हैं कि ‘राम मंदिर तो अयोध्या में वहां बन चुका है, जहां रामलला वर्तमान में विराजमान हैं, अब तो उसे सिर्फ एक भव्य आकार देना षेश है।‘ खैर इसमें कोई दो राय नहीं कि घोशणा के बावजूद प्रदेष की भाजपा सरकार ‘राम-वन-गमन-पथ‘ को लेकर सोई हुई थी। उसकी आंखें तब खुलीं, जब दिग्विजय सिंह ने नर्मदा परिक्रमा के दौरान इस मुद्दे को हवा दी। इसी का परिणाम रहा कि 2017 में प्रदेष सरकार ने 69 करोड़ रुपए का एक प्रस्ताव बनाकर केंद्र सरकार को भेजा और इसे जल्द मंजूरी मिल जाने का दावा किया। जबकि यह राषि इतनी छोटी थी कि इसका खर्च स्वयं प्रदेष सरकार उठा सकती थी ? गोया इस मुद्दे पर प्रदेष कांग्रेस सरकार को कठघरे में है।

हालांकि षिवराज सिंह चैहान सरकार ने इस पथ की घोशणा के बाद संस्कृति विभाग ने 11 विद्धानों की एक समिति बनाकर ‘राम-वन-गमन-पथ‘ योजना समय पर संस्कृति विभाग को सौंप दी थी। इस रिपोर्ट के अनुसार भगवान राम ने सीता व लक्ष्मण के साथ चित्रकूट से वर्तमान मध्य-प्रदेष में प्रवेष किया। तत्पष्चात अमरकंटक होते हुए वे रामेष्वरम् और फिर श्रीलंका तक गए। पौराणिक मान्यता और बाल्मीकि रामायण भी यही दर्षाते हैं। साथ ही यह भी मान्यता है कि 14 वर्श के वनवास में भगवान राम ने लगभग 11 वर्श 5 माह इन्हीं वनों में व्यतीत किए और वनवासियों को अपने पक्ष में संगठित किया। इस कालखंड में राम जिन मार्गों से गुजरे और जहां-जहां ठहरे, उनमें से ज्यदातर सतना, रीवा, पन्ना, छतरपुर, षडहोल और अनूपपुर जिलों में हैं। इस प्रतिवेदन को तैयार करने में रामकथा, साहित्य, पुरातत्व, भूगोल, हिंदी और भूगर्भ षास्त्र के विशयों से जुड़े करीब 29 विद्धानों की मदद ली गई।
हालांकि जनश्रुतियों में ये सभी स्थान पहले से ही मौजूद हैं और भगवान राम से जुड़े होने के कारण पूजा और पर्यटन से भी जुड़े हैं। षिवराज की घोशणा के मुताबिक इन सभी स्थलों का विकास धार्मिक पर्यटन के रूप में किया जाना था, जिससे इस यात्रा की ऐतिहासिकता को लोग आसानी से समझ सकें, किंतु सरकार पूरे 11 साल घोशाण पर कुण्डली मारे बैठी रही। कांग्रेस इस मार्ग की यात्रा इसलिए कर रही है, क्योंकि इस यात्रा का बड़ा हिस्सा उस विंध्य क्षेत्र में आता है, जहां विधानसभा की 30 सीटें हैं। पिछले चुनाव में इस पूरे क्षेत्र में कांग्रेस मजबूत थी। बहरहाल प्रदेष सरकार की लापरवाही के चलते बैठे-ठाले कांग्रेस को एक बड़ा मुद्दा इस पथ के बहाने हाथ लग गया है।

कांग्रेस भाजपा का गौरक्षा से जुड़ा मुद्दा हथियाने की भी फिराक में है। प्रदेष कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने घोशण की है कि यदि कांग्रेस सत्ता में आती है तो वह प्रदेष की प्रत्येक ग्राम पंचायत में गौषाला का निर्माण करेगी। याद रहे 1934 में महात्मा गांधी ही पहली बार गौरक्षा का प्रस्ताव लेकर आए थे। 1954 में मध्य-प्रदेष के गठन के बाद 1954-55 में कांग्रेस के तत्कालीन और प्रदेष के पहले मुख्यमंत्री रविषंकर षुक्ला ने प्रदेष में कानून बनाकर गौ-हत्या पर प्रतिबंध लगाया था। यह भी ठोस हकीकत है कि कांग्रेस के राज में ही प्रदेष में बड़ी और प्रमुख गौषालाएं बनीं। यदि षिवराज सरकार की गौ-रक्षा की इच्छा प्रबल होती तो भाजपा षासन के बीते 15 सालों में प्रत्येक पंचायत में गौषला अस्तित्व में आ गई होती ? बहरहाल कांग्रेस ने भाजपा के हथियार से ही भाजपा को भौंथरा कर देने की जो रणनीति चली है, वह भाजपा को नुकसान पहुंचाने वाली है।

इधर इंदौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दाउदी वोहरा समाज के कार्यक्रम में षिरकत करके अपनी पुरातन सोच के विपरीत यह संदेष दिया है कि उनकी सोच और निश्ठा जहां तुश्टिकरण की राजनीति को अहमियत देने लग गई है, वहीं कांग्रेस नरम हिंदुत्व को अपनाकर हिंदुओं में पैठ बनाने में सफल हो रही है। बहरहाल इन बदलती निश्ठााओं से भाजपा नुकसान उठा सकती है, क्योंकि वह चुनाव जीतने के लिए ऐसे टोटके अपनाने में लग गई हैं, जो कभी उसकी सोच और राजनीति का पैमाना नहीं रहे। खैर, स्थापित छवि बदलने के ये उपाय किसे घातक साबित होंगे, यह तो चुनाव परिणाम से ही स्पश्ट होगा।


प्रमोद भार्गव
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