पटाखे फोड़ने के तय समय का व्यावहारिक पक्ष

                                            पटाखे फोड़ने के तय समय का व्यावहारिक पक्ष                                                     ...

                                           पटाखे फोड़ने के तय समय का व्यावहारिक पक्ष 
                                                                    प्रमोद भार्गव


पटाखों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने अंतिम कानूनी स्थिति साफ कर दी है। न्यायालय ने अपने फैसले में लोगों की भावनाएं और प्रकृति के बिगाड़ते पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने की कोषिष की है। उसने अपने आदेष में पूरे देष में पटाखों पर रोक लगाने से इंकार करके यह जता दिया है कि उसे इनके निर्माण से लेकर व्यापार करने वाले लोगों की आजीविका की चिंता है।

 हालांकि इसके लिए कुछ षर्तें भी तय की गई हैं। अब केवल उन्हीं पटाखों को बेचने की अनुमति होगी, जिससे पर्यावरण को कम से कम नुकसान हों। जाहिर है सुरक्षित पर्यावरण के अनुकूल पटाखे बेचने की अनुमति दी गई है। साथ ही दिवाली के दिन केवल आठ से 10 बजे तक पटाखे फोड़ने की अनुमति है। इसी तरह क्रिसमस और नए साल के अवसर पर पटाखे महज 11.55 से रात 12.30 तक ही फोड़े जाएंगे।

 पटाखे केवल वही दुकानदार बेच सकेंगे, जिनके पास लाइसेंस हैं। इनकी आॅनलाइन बिक्री पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगी। इसका मतलब है कि ई-काॅमर्स बेवसाइटों से पटाखों की खरीद संभव नहीं हो सकेगी। न्यायालय ने इस फैसले में धार्मिक जलसों में भी पटाखे जलाने पर रोक लगा दी है। यह निर्णय सभी धर्मों पर लागू होगा। न्यायालय का यह फैसला व्यापक असर डालने वाला होने के साथ, उस हर पहलू को इंगित करता है, जो पटाखों से प्रभावित है। इस लिहाज से अब बार-बार इस संदर्भ में न्यायालय में बार-बार जनहित याचिका दायर करने की जरूरत नहीं रह गई।

न्यायालय ने कहा है कि संविधान का अनुच्छेद-21 में दर्ज जीवन का अधिकार सभी लोगों पर लागू होता है। लिहाजा पटाखों पर देषव्यापी रोक पर विचार करते समय संतुलन दर्षाना जरूरी है। साफ है, अदालत ने इस जोखिम भरे पटाखा उद्योग से रोजी-रोटी कमा रहे लाखों लोगों की चिंता को ध्यान में रखा है। षायद ऐसा इसलिए भी किया गया है, क्योंकि पिछले साल दिवाली के मौके पर अदालत ने दिल्ली सहित एनसीआर में पटाखे की बिक्री पूरी तरह प्रतिबंधित कर दी थी, किंतु इस आदेष पर षत-प्रतिषत अमल नहीं हो पाया। इसकी विपरीत हिंदू आस्था वाले राजनीतिक दल के लोगों ने आदेष की अवज्ञा करते हुए घर-घर जाकर पटाखे बांटे और उन्हें दिवाली के दिन छोड़ने का अगाह किया। इस नाते यह आदेष व्यावहारिक होने के साथ आजीविका और प्रदूशण से जुड़े सभी पहलुओं को रेखांकित करते हुए, कहीं ज्यादा संवेदनषील है। पिछले साल बालकों के एक समूह ने अदालत में पटाखों पर रोक से जुड़ी याचिका लगाई थी।

हालांकि हम जानते है कि बच्चे आतिषबाजी के प्रति अधिक उत्साही होते हैं और उसे चलाकर आनंदित भी होते है। जबकि यही बच्चे वायु एवं ध्वनि प्रदूशण से अपना स्वास्थ्य भी खराब कर लेते हैं। पटाखों की चपेट में आकर अनेक बच्चे आंखों की रोषनी और हाथों की अंगुलियां तक खो देते है। इसके साथ ही पटाखे फोड़ने से जो धुंआ और दुर्गंध वायुमंडल में विलीन हो जाते हैं, वे लंबे समय तक हर उम्र के व्यक्ति की सेहत से खिलवाड़ में लगे रहते हैं। वायु के ताप और आपेक्षिक आद्रता का संतुलन गड़बड़ा जाने से हवा प्रदूशण के दायरे में आने लगती है। यादि वायु में 18 डिग्री सैल्सियस ताप और 50 प्रतिषत आपेक्षिक आर्द्रता हो तो वायु का अनुभव सुखद लगता है। लेकिन इन दोनों में से किसी एक में वृद्धि, वायु को खतरनाक रूप में बदलने का काम करने लग जाती है। ‘राश्ट्रीय वायु गुणवत्ता मूल्यांकन कार्यक्रम‘ (;एनएसीएमपी) के मातहत ‘केंद्रीय प्रदूशण मंडल‘ ;(सीपीबी) वायु में विद्यमान ताप और आद्रता के घटकों को नापकर यह जानकारी देता है कि देष के किस शहर में वायु की षुद्धता अथवा प्रदूशण की क्या स्थिति है। नापने की इस विधि को ‘पार्टिकुलेट मैटर‘ मसलन ‘कणीय पदार्थ‘ कहते हैं। प्रदूशित वायु में विलीन हो जाने वाले ये पदार्थ हैं, नाइट्रोजन डाईआॅक्साइड और सल्फर डाईआॅक्साइड। सीपीबी द्वारा तय मापदंडों के मुताबिक उस वायु को अधिकतम षुद्ध माना जाता है, जिसमें प्रदूशकों का स्तर मानक मान के स्तर से 50 प्रतिषत से कम हो।

सीपीबी ने उन षहरों को अधिक प्रदूशित माना है, जिनमें वायु प्रदूशण का स्तर निर्धारित मानक से डेढ़ गुना अधिक है। यदि प्रदूशण का स्तर मानक के तय मानदंड से डेढ़ गुना के बीच हो तो उसे उच्च प्रदूशण कहा जाता है। और यादि प्रदूशण मानक स्तर के 50 प्रतिषत से कम हो तो उसे निम्न स्तर का प्रदूशण कहा जाता है। वायुमंडल को प्रदूशित करने वाले कणीय पदार्थ, कई पदार्थों के मिश्रण होते हैं। इनमें धातु, खनिज, धुएं, राख और धूल के कण षामिल होते हैं। इन कणों का आकार भिन्न-भिन्न होता है। इसीलिए इन्हें वगीकृत करके अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी के कणीय पदार्थों को पीएम-10 कहते हैं। इन कणों का आकार 10 माइक्राॅन से कम होता है।

दूसरी श्रेणी में 2.5 श्रेणी के कणीय पदार्थ आते हैं। इनका आकार 2.5 माइक्राॅन से कम होता है। ये कण षुश्क व द्रव्य दोनों रूपों में होते हैं। वायुमंडल में तैर रहे दोनों ही आकारों के कण मुंह और नाक के जरिए ष्वांस नली में आसानी से प्रविष्ट हो जाते हैं। ये फेफड़ों तथा हृदय को प्रभावित करके कई तरह के रोगों के जनक बन जाते हैं। आजकल नाइट्रोजन डाईआॅक्साइड देष के नगरों में वायु प्रदूशण का बड़ा कारक बन रही है।

औद्योगिक विकास, बढ़ता षहरीकरण और उपभोगक्तावादी संस्कृति, आधुनिक विकास के ऐसे नमूने हैं, जो हवा, पानी और मिट्टी को एक साथ प्रदूशित करते हुए समूचे जीव-जगत को संकटग्रस्त बना रहे हैं। यही वजह है कि आदमी दिल्ली की प्रदूशित वायु की गिरफ्त में है। क्योंकि यहां वायुमंडल में वायु प्रदुशण की मात्रा 60 प्रतिषत से अधिक हो जाती है।

दिल्ली-एनसीआर में एक तरफ प्राकृतिक संपदा का दोहन बढ़ा हैं, तो दूसरी तरफ औद्योगिक कचरे में बेतहाषा बढ़ोत्तरी हुई। लिहाजा दिल्ली में जब षीत ऋृतु दस्तक देती है तो वायुमण्डल में आर्द्रता छा जाती है। यह नमी धूल और धुएं के बारीक कणों को वायुमण्डल में विलय होने से रोक देती है। नतीजतन दिल्ली के ऊपर एकाएक कोहरा आच्छादित हो जाता है। वातावरण का यह निर्माण क्यों होता है, मौसम विज्ञानियों के पास इसका कोई स्पश्ट तार्किक उत्तर नहीं है।

वे इसकी तात्कालिक वजह पंजाब एवं हरियाणा के खेतों में जलाए जाने वाले फसल के डंठलों और दिवाली के वक्त चलाए जाने वाले पटाखों को बताकर जुम्मेबारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। अलबत्ता इसकी मुख्य वजह हवा में लगातार प्रदूशक तत्वों का बढ़ना है। दरअसल मौसम गरम होने पर जो धूल और धुंए के कण आसमान में कुछ ऊपर उठ जाते हैं, वे सर्दी बढ़ने के साथ-साथ नीचे खिसक आते हैं। दिल्ली में बढ़ते वाहन और उनके सह उत्पाद प्रदूशित धुंआ और सड़क से उड़ती धूल अंधियारे की इस परत को और गहरा बना देते हैं।

प्रमोद भार्गव 

दिवाली पर रोषनी के साथ ही आतिषबाजी छोड़कर जो खुषियां मनाई जाती है, उनके सांस्कृतिक एवं व्यापारिक पक्ष को भी  देखने की जरूरत है। अकेली दिल्ली में पटाखों का 1000 करोड़ रुपय का कारोबार होता है, जो कि देष में होने वाले कुल पटाखों के व्यापार का 25 फीसदी हैं। इससे छोटे-बड़े हजारों थोक व खेरीज व्यापारियों और पटाखा उत्पादक मजदूरों की सालभर की रोजी-रोटी चलती है। इस लिहाज से न्यायालय ने इस फैसले में सभी पक्षों की भावना और रोजगार को ध्यान में रखते हुए, इन्हें फोड़ने का समय तय करके यह जता दिया है कि संस्कृति के साथ सेहत की सुरक्षा भी जरूरी है।

प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49,श्रीराम काॅलोनी
शिवपुरी म.प्र.
मो. 09425488224
फोन 07492 232007

लेखक,वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।

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पटाखे फोड़ने के तय समय का व्यावहारिक पक्ष
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