क्या आप भी किसी से प्रेम करते हैं अगर हाँ तो इसे जरूर पढिये ...?

                            प्रेम का वास्तविक अर्थ क्या...?    पर्सनल लाइफ के नाम पर खुद के बजूद से खेलती युवा पीड़ी  फरवरी ...

                            प्रेम का वास्तविक अर्थ क्या...?



   पर्सनल लाइफ के नाम पर खुद के बजूद से खेलती युवा पीड़ी 

फरवरी में आने वाला पाश्चात्य पर्व वैलेंटाइन सात दिन चलने वाला त्यौहार है। जिसे रोज डे, प्रपोज डे, टेडी डे, चाॅकलेट डे, हग डे,प्रॉमिसडे और किस डे के बाद वैलेंटाइन डे के रूप में मनाया जाता है। बताया तो यह भी जाता है कि 15 फरवरी का दिन कुछ ज्यादा खास होता है। सभ्यता हमारे लिए सर्वोपरी है इसलिए हम उसे इस्तेमाल नहीं करते जो जानते हैं वो बेहतर समझते हैं। अब पाश्चात्य सभ्यता के इस त्यौहार को आज की युवा पीढ़ी जिस अंदाज में मनाती है और उसे वो प्रेम कहती है। अगर इस विषय पर और इस युवा पीढ़ी के प्रेम पर थोड़ा विश्लेषण किया जाए तो मालूम चलता है कि साल दर साल उनके वैलेंटाइन बदलते चले जाते हैं। सवाल अगर उठाया जाए तो वह इसे पर्सनल लाइफ में इंटरफेयर कहकर दरकिनार कर देते हैं। दरअसल पर्सनल लाइफ की एक और परिभाषा है। कुछ आंतरिक संबंध पर्सनल लाइफ की श्रेणी में भी डाल दिए जाते हैं। हमें किसी के व्यक्तिगत जीवन में झांकने की आवश्यकता नहीं है न ही किसी की संस्कृति को गैर जिम्मेदार बताने का ठेका भी हमने लिया है। अपितु प्रेम को परिभाषित करने की बात हम आवश्यक रूप से कर सकते हैं। प्रेम वह है जो अनादि-अनादि काल से निरंतर अपना स्थान बनाए हुए है। प्रेम दो शरीरों का मिलन नहीं बल्कि दो आत्माओं का एक-दूसरे के प्रति समर्पण है। प्रेम एक ऐसा शब्द है जिसका हमारे शास्त्रों में बहुत प्रासंगिक उल्लेख है, लेकिन हमारे शास्त्र क्या कहते हैं, ये हमारी युवा पीढ़ी समझना नहीं चाहती। पाश्चात्य संस्कृति क्या कहती है, इस बात को लेकर युवाओं में आकर्षण दिन प्रतिदिन बढ़ा है। शास्त्र कहते हैं जिसके पास अपना किसी को देने के लिए कुछ नहीं वह किसी को प्रेम क्या दे सकता है। अर्थ समझ गए होंगे आप..! जिसने अपनी मर्यादा को पर्सनल लाइफ की आढ़ में जा जलाया हो वह क्या किसी से वास्तविक प्रेम कर सकता है। प्रेम वहीं पैदा होता है जहां किसी के लिए आपके हृदय में करूणा हो। आज की इस दुनिया में जो जगह पर्सनल लाइफ ने ली है उसने करूणा की हत्या कर दी है और ये करूणा के खत्म होने के बाद प्रेम का अस्तित्व भी जैसे खोने लगा है। प्रेम वह है जो साथी के प्रति प्यार, समर्पण, त्याग, विश्वास और मर्यादा की डोर से बंधा हुआ है और पर्सनल लाइफ वो है कि आप भले ही एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे या चैथे को प्रपोज कर रहे हों या उससे प्रेम होने का दावा कर रहे हों यहां तक कि अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन तक कर रहे हों वहां भला प्रेम कैसे अपना स्थान ले सकत है। किसी युवती से बात की जाए तो वो कहती है कि प्रेम में सच्चाई नहीं है और आज की दुनिया में सच्चा प्रेम कहीं नहीं है। युवक से बात की जाए तो वो कहता है कि प्रेम की प्रासंगिता पर प्रश्न है। तो हम कहां जा रहे हैं, क्या हमारा समाज विक्रत नहीं होने लगा है। प्रेम से जब भरोसा उठने लगे और पर्सनल लाइफ की आढ़ में लोग मर्यादाओं का उल्लंघन करने लगे तो फिर श्वान अंग्रेजी अर्थ dog/bitch  और इंसान में फर्क भला क्या रह जाता है। इसे समझने की सख्त जरुरत है। दरअसल एक विश्लेषण यह भी बताता है कि समाज में जिस तरह का आकर्षण व्याप्त हुआ है और हमारी संस्कृति के ऊपर पाश्चात्य संस्कृति का जो प्रहार हुआ है साथ ही उंगलियों पर चलने वाली ऐसी टेक्नाॅलाॅजी हमारे बीच है जिसके अर्थ, मायने समझे बगैर हम वो सब कर रहे हैं जो शास्त्र विरुद्ध है। परिणाम स्वरूप न्यायालय में बढ़ते पारिवारिक विवाद, अत्यधिक तलाक और जीवन के कुचक्र में भटकाव की ओर बढ़ती हमारी युवा पीढ़ी। दिशा हीन होता समाज और पर्सनल लाइफ की आढ़ में मनमर्जी करते युवक-युवती क्या यही वैलेंटाइन है। इस वैलेंटाइन को अगर पाश्चात्य संस्कृति से भी समझने की कोशिश की जाए तो इसमें भी प्रपोजल अर्थात् हिंदी अर्थ में प्रस्ताव महत्व रखता है। इसी पाश्चात्य संस्कृति में शरीर को छूने से पहले प्रोमिस-डे भी मनाया जाता है अर्थात् एक ऐसा वचन जो दोनों को एक दूसरे के प्रति समर्पण का बोध कराता हो। उसके बाद किस डे अर्थात् चुंबन दिन आता है। यानि पाश्चात्य संस्कृति भी यही संदेश देती है कि प्रेम सर्वोपरि है और उसका निर्धारण विश्वास, वचन पर ही आधारित है। पाश्चात्य संस्कृति के किसी भी चैप्टर में पर्सनल लाइफ की आढ़ में अपना वैलेंटाइन (प्रेमी-प्रेमिका) बदलना यर्थात् नहीं कहलाता। समझने की बात है हमारे शास्त्र प्रेम को परिभाषित करते हुए दो आत्माओं का ऐसा मिलन व्यक्त करते हैं जहां इंसान को इंसानी जज्बात के साथ मोहब्बत का पैगाम देना सिखाया जाता है। यूं तो श्वान अंग्रेजी अर्थ dog/bitch भी प्रेम करते हैं। सड़कों पर श्वानो अंग्रेजी अर्थ dog/bitch  को प्रेम करते किसने नहीं देखा, लेकिन इंसान श्वान-अंग्रेजी अर्थ dog/bitch  तो नहीं। फिर ये रीत क्यों? हमारी पहचान खोना और सबकुछ लुटाकर किसी से प्रेम का छलावा करना या उसका होने का दावा करना वास्तविक आधार रखता है। विषय बहुत गूढ़ है और इस संबंध में तर्क-वितर्कों की कोई कमी नहीं। समझने वाले के लिए प्रेम वह समर्पण है जो किसी एक के लिए किया जाए और न समझने वाले के लिए प्रेम हर साल फरवरी में आने वाला महज एक वैलेंटाइन। 

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