एक और वीरांगना अतुल गौड़ यूँ तो राजनीती और...
एक और वीरांगना

यूँ तो राजनीती और जनसेवा यशोधरा राजे के रक्त कण में मौजूद है और हो भी कियूं न वो एक ऐसी शकशियत की पुत्री हैं जिन्होंने न केवल राजनीति बल्कि जनसेवा से अपना नाता जोडकर जनसंघ को आधार दिया इतना ही नहीं जब राजमाता विजया राजे को किसी ने भी हलके से लेने की कोशिश की तो उन्होंने अपनी राजनैतिक पकड़ और मजबूत इरादों को सबके सामने रखा ,कोई भूल सकता है वो एतिहासिक पल जब मद्यप्रदेश में रातों रात तख्ता पलट कर अपना रुतबा रसूख सबको दिखाया था ,आपको याद होगा जब कांग्रेस छोड़ने का फैसला जियोतिरादित्य सिंधिया ने लिया तो राजमाता की इसी पुत्री ने गरजते हुए कहा की राजमाता के रक्त ने सही फैसला लिया और परिवार में वापसी की अपने भतीजे की बीजेपी में आने की ख़ुशी उनके चहरे पे साफ़ थी और एक खुला बयान मुख पर ये एक वीरांगना का ही तो परिचय है जिसने अपने जीवन में राजनैतिक रूप से कई चुनौतियों को स्वीकार किया राजनीति वो है जहाँ पक्ष और विपक्ष दोनों से ही राजनेतायों को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है ऐसे में जब राजे ने राजनिति में कदम रखा तब माँ विजया राजे पर बड़ी जिम्मेदारी थी और उनका स्वास्थ भी ठीक नहीं था दरअसल बीजेपी के असली या यूँ कहें के राजमाता के उमीदवार थे सुशील बहादुर अस्थाना लेकिन टिकिट की प्रतिर्स्पर्धा में बीजेपी का चुनाव निशान कमल मिला था विनोद गर्ग को ऐसे में राजमाता को अपनी ही पार्टी और विपक्षी पार्टी कांग्रेस से दो दो हाथ करने थे तब राज माता ने अपनी अस्वस्था के चलते अपनी लाडली और सबसे छोटी बेटी यशोधरा को ही ये चुनाव जिताने की जिम्मेदारी दी जिसे राजे ने बखूभी निभाया और सुशील बहादुर अस्थाना चुनाव जीते फिर अगले चुनाव में खुद राजे ने चुनावी मैदान संभाला और एक के बाद एक छोटी बड़ी चुनौतियों का सामना किया ये राजे के लिए वो दौर था जब अपनी ही पार्टी में कुछ नेतायों को राजे खटकने लगी थी लेकिन राजे उसी वीरांगना की पुत्री थीं जो मुशिकल वक़्त में और ज्यादा ताक़तवर नज़र आती थीं चाहे वो इमरजेंसी काल हो या चुनावी समर, राजे ने शिवपुरी विधानसभा से चुनावी बिगुल फूंका था फिर पार्टी ने उन्हें घेरने की कोशिश की और अचानक ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से चुनावी समर में जा भेजा कुछेक नेता तो दिनरात इस दौरान ये कामना करते देखे गए की राजे लडखडा जाएँ लेकिन हौसले से बड़े हुए कदम कभी डगमगाया नहीं करते इस बात को आत्मसात करते हुए राजे ने कभी भी खुदको कमजोर होने नहीं दिया राजे दो बार ग्वालियर से सासद रहीं फिर पार्टी को राजे की जरुरत राज्य में हुयी तब एक बार फिर से राजे को अचानक ही शिवपुरी विधानसभा से चुनावी मैदान में जा उतारा उन पार्टी नेतायों के मसूबे एक बार फिर से फलने फूलने लगे जो किसी भी तरह हो बस राजे को शिकश्त देना चाहते थे लेकिन राजे की पैनी नज़र लोगों से संवाद और खुद पर पूरा यकीन और ज्यादा ताकतवर बना गया इस लड़ाई में राजे न केवल चुनाव जीती बल्कि उद्योग मंत्री व धर्मस्व मंत्री भी रही इसी दौरान शिवपुरी ने भी विकास की दौड़ लगाई पानी लेन की बात हो या सीवेज लाइन सब पर तेजी देखी गयी सड़कों का निर्माण धर्म स्थलों की चमक कौन भूलेगा ये सब राजे के मजबूत इरादों से ही संभव हुआ इस दौरान राजे का प्रदेश में कद भी लगातार बड़ा और मुख्यमंत्री शिवराज के बाद प्रदेश का दूसरा बड़ा चेहरा राजे ही रहीं साथ ही पिछला चुनाव राजे ने अपने अथक परिश्रम और विकास के मुद्दे पर ही लड़ा और जीता एक बड़े मार्जन से ये चुनाव तो राजे ने जीता लेकिन चंद विधायकों की कमी के चलते उनकी पार्टी सरकार नहीं बना सकी थी राजनीती पल पल रूप बदलती है तो फिर एक ऐसा ही दौर आया जब कांग्रेस लीडर जियोतिरादित्य सिंधिया अपनी ही पार्टी में लगातर अपनी उपेक्षा के चलते पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए उनकी बुआ राजे ने बड़े दिल से उनका बीजेपी में स्वागत किया और कटाक्ष से भरा हुआ वो बयान जारी किया जो लोग जियोतिरादिय सिंधिया की हार के बाद सिधिया परिवार के राजनैतिक पतन की बातें करने लगे थे मुख्यमत्री शिवराज के साथ प्रेस कांफ्रेंस का समय हो या और कोई मसला राजे से रायशुमारी अहम् थी अब जब प्रदेश में एक बार फिर से राजे की बीजेपी सरकार है और राजे केबिनेट मंत्री तो राजे के कद को किस पडले में रखा जाकर तोला जाये ये किसी से भी छुपा नहीं है सरकार में एक बड़ी जिम्मेदारी के साथ एक बार फिर से राजे की राजनैतिक कुशलता को आप और हम अपनी आखों से देखेंगे बल्कि आने वाले विधान सभा उपचुनावों में भी राजे अपनी योगिता के बलबूते पार्टी को सरकार बनाने के लिए विधायकों की पूर्ति के लिए अपनी कमर कसे नज़र आएँगी राजे एक वीर पुत्री हैं वो माँ के दिए सेवा संस्कारों को आधार बना कर चलती हैं और यही वजह है की पार्टी उन्हें हलके से लेने की भूल कभी नहीं कर सकती ग्वालियर चम्बल संभाग में राजे की पकड़ और एक योग्य राजनेता के रूप में खुद को स्थापित कर चुकी राजे अब जो पारी खेलेंगी उस पर भी सबकी कड़ी नज़र होगी ये काल करोना काल है सरकार की कमजोर अर्थ वैवस्था विकास कार्यों में खलल के बीच वेहतर प्रदर्शन करना राजे के लिए अब एक नयी चुनौती है लेकिन मुश्किल हालातों में शेरनी की तरह दिखाई देने वाली राजे इस दौरान भी खुद को और पार्टी को किस तरह से उभारती हैं ये मारके वाली बात होगी राजे को जानने वाले लोग जानते हैं की राजे एक वास्विक वीरांगना हैं जो मुश्किलों से भागती नहीं बल्कि उनका सामने से डटकर मुकाबला करती हैं और इसमें कोई शक नहीं की राजे इस नयी बेटिंग अपने जज्बे और जनूनको कायम रखते हुए प्रदेश की कदावर मंत्री के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को निभाएंगी

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